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त्रंबकेश्वर मंदिर १२ ज्योतिर्लिंग में से अदभुत ज्योतर्लिंग :Trimbakeshwar in Hindi

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य: 

"त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग" भारत का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह विशेष है।यह स्वयंभू मंदिर नासिक शहर से 28 किमी की दूरी पर सह्याद्रि पर्वत की तलहटी में त्र्यंबकेश्वर तालुका में स्थित है। पवित्र नदी "गंगा गोदावरी" का स्रोत त्र्यंबकेश्वर के पास ब्रम्हगिरी पर्वत के पास है । मंदिर परिसर के निकट ही कुशावर्त तीर्थ है। पौराणिक संदर्भों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा ने श्री महादेव को प्रसन्न करने के लिए यहां एक पर्वत पर तपस्या की थी,जिसे बाद में "ब्रह्मगिरि पर्वत" के नाम से जाना जाने लगा। किसी समय इस पर्वत पर गौतम ऋषि का आश्रम था। गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की और महादेव को प्रसन्न किया। गौतम ऋषि के अनुरोध पर महादेव यहां त्रिमूर्ति रूप में ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए। तभी से इस स्थान को त्र्यंबकेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। 

त्र्यंबकेश्वर शिवलिंग का वास्तविक रूप  अन्य 11 ज्योतिर्लिंगों से अलग है, क्योंकि त्र्यंबकेश्वर में शिवपिंडी में तीन अंगूठे के आकार के तीन लिंग है  जिनमें त्रिदेव यानी "ब्रह्मा-विष्णु-महेश" मौजूद होते हैं ऐसा माना जाता है। 


त्र्यंबकेश्वर मंदिर का समय

त्र्यंबकेश्वर मंदिर का समय सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक है

श्री त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर  का इतिहास |History Of Trimbakeshwar temple in Hindi :"श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग" की गिनती हिंदू तीर्थस्थलों में स्वयंभू स्थानों में होती है। यह पवित्र मंदिर ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित है जहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। "गोदावरी नदी" महाराष्ट्र की सबसे लंबी नदी (1465 किमी लंबी) है। हाल ही में खोजे गए ऐतिहासिक साक्ष्य साबित करते हैं कि त्र्यंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार 1755-1786 ई. में श्री बालाजी बजाराव उर्फ ​​श्री नानासाहेब पेशवा द्वारा 31 वर्षों की अवधि में पूरा किया गया था। यह मंदिर हेमाडपंती शैली की वास्तुकला का है।मंदिर की ऊंचाई 90 फीट है और इसमें पांच शिखर हैं। यह मंदिर काले पत्थर से बनाया गया है जो मंदिर की खूबसूरती को और भी बढ़ा देता है. मंदिर में प्रवेश के लिए 6 से 7 कतारें बनाई गई हैं ताकि यहां आने वाले भक्त दर्शन कर सकें। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास नंदी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि नंदी शंकर के परम भक्त हैं इसलिए शंकर नंदी की इच्छा सुनते हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद भक्तों को पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं।

ब्रह्मगिरी पर्वत त्र्यंबकेश्वर | Bramhgiri in Hindi :"ब्रह्मगिरि पर्वत" वह प्रतिष्ठित स्थान है जहाँ पवित्र नदी गंगा का उद्गम हुआ है। ब्रह्मगिरि पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 4248 फीट है और गंगा नदी ब्रह्मगिरि की पर्वत श्रृंखला से होकर बहती है। ब्रह्मगिरि पर्वत पर 700 सीढ़ियाँ हैं और शिखर तक पहुँचने में कम से कम 4 से 5 घंटे लगते हैं।

"गंगाद्वार" को ब्रह्मगिरि पर्वत का मुख्य द्वार माना जाता है। गंगाद्वार आधार से लगभग आधे रास्ते पर स्थित है। यहां श्री "गोदावरी" देवी का मंदिर भी है। ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी सबसे पहले गंगाद्वार पर प्रकट हुई थी और ऋषि गौतम ने गंगा को "कुशावर्त तीर्थ" पर आगे बहने से रोक दिया था, इस प्रकार गोदावरी को "गौतमी गंगा" के नाम से जाना जाने लगा। कुशावर्त तीर्थ पर 12 वर्ष में एक बार कुंभ का  मेला लगता है।

कुशावर्त तीर्थ और कुंभ मेला:गोदावरी नदी ब्रह्मगिरि पर्वत से लुप्त होकर कुशावर्त  में प्रकट होती है। पुराणों में उल्लेख के अनुसार, "श्री गौतम ऋषि" ने कुशावर्त तीर्थ में गंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया था, इसलिए कई भक्त पापों से छुटकारा पाने और पुण्य प्राप्त करने के लिए यहां स्नान करते हैं। विशेषकर इस स्थान पर 12 वर्ष में एक बार "कुम्भ मेला" लगता है। पौराणिक प्रसंग के अनुसार ज्ञात होता है कि भगवान श्री राम ने पितरों की मुक्ति के लिए कुशावर्त तीर्थ पर राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म किया था। यही कारण है कि त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान के लिए विदेशों से भी कई भक्त यहां आते है। 

नासिक से त्रंबकेश्वर कैसे पहुँचें?

त्र्यंबकेश्वर पहुंचने के तीन आसान रास्ते हैं। सड़क, रेल और हवाई मार्ग:

  •  नासिक से  त्र्यंबकेश्वर 29.5 किमी है।
  • मुंबई से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - दूरी 185.7 किमी है।
  • पुणे  से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - दूरी 240.05   किमी है।
  • शिरडी से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - दूरी 116.5 किमी है। 
  • ठाणे से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - घोटी होते हुए यह दूरी 157 किमी है। 
  • जवाहर से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - यह दूरी 51 किमी है।
  • औरंगाबाद से त्र्यंबकेश्वर मार्ग - कई भक्त औरंगाबाद जिले से त्र्यंबकेश्वर पहुंचने के लिए औरंगाबाद-नासिक राजमार्ग लेते हैं और फिर नासिक से त्र्यंबकेश्वर पहुंचते हैं। औरंगाबाद से नासिक की दूरी 197 किमी है और आगे 28 किमी की कुल दूरी 225 किमी है।
रेलवे:
आप विभिन्न राज्यों से रेल मार्ग द्वारा नासिक रोड रेलवे स्टेशन तक पहुँच सकते हैं और फिर सार्वजनिक वाहन द्वारा त्र्यंबकेश्वर पहुँच सकते हैं।

हवाई मार्ग :
नासिक के पास ओज़ार एयरपोर्ट पर कुछ  राज्यों से आने वाले भक्तों के लिए उपलब्ध है। जहां से निजी वाहन लेकर सीधे त्र्यंबकेश्वर पहुंचा जा सकता है।

त्र्यंबकेश्वर में मनाये जाने वाले त्यौहार: त्र्यंबकेश्वर एक प्रमुख तीर्थ स्थान है इसलिए सालभर  भक्तों की भीड़ लगी रहती है। श्रावणी सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर में  भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 

महाशिवरात्रि:
"महाशिवरात्रि" भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पड़ता है। पौराणिक प्रसंग के अनुसार इसी दिन श्री शंकर ने सृष्टि की रचना की थी। इसी प्रकार इसी दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। यह पवित्र दिन भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस शुभ दिन पर, भक्त त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कुशावर्त तीर्थ पर एकत्रित होते हैं। हालांकि इस दिन मुख्य मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5.30 बजे से रात 9 बजे तक है। 

श्रावण शद्ध पंचमी (नाग पंचमी):नाग पंचमी के अवसर पर श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर के संभा मंडपम में भव्य कछुए पर चांदी के नाग की पूजा की जाती है, श्रावण माह में प्रत्येक सोमवार को दोपहर 3 से 4 बजे तक श्री त्र्यंबकेश्वर के पंचमुखी स्वर्ण मुखौटे की पालकी समारोह आयोजित किया जाता है।
श्रावण के महीने में त्र्यंबकेश्वर शहर के विभिन्न देवताओं (गंगा गोदावरी - तीर्थराज कुशावर्त, केदारेश्वर महादेव, ब्रह्मगिरि पर मूलगंगा, करपर्दिकेश्वर महादेव, श्री हनुमान, आदि) की पूजा की जाती है।

त्र्यंबकेश्वर महादेवाची आरती | Trimbakeshwar Shiva Aarti
॥ आरती त्र्यंबकराजाची ।।

जय जय त्र्यंबकराज गिरिजानाथा गंगाधरा हो ।।
त्रिशूलपाणी शंभो नीलग्रीवा शशिशेखरा हो।।
वृषभारूढ फणिभुषण दशभुज पंचानन शंकरा हो।।
विभूतिमाला जटा सुंदर गजचर्माबरधरा हो ।। ध्रु० ।।

पडलें गोहत्येचें पातक गौतमक्रषिच्या शिरीं हो।।
त्यानें तप मांडिलें ध्याना आणुनि तुज अंतरीं हो ।।
प्रसन्न होउनि त्यातें स्नाना दिधली गोदावरी हो ।।
औदुंबरमुळिं प्रगटे पावन त्रैलोक्यातें करी हो ।। जय० ॥ १ ।।

धन्य कुशावर्ताचा महिमा वाचे वर्णू किती हो ।
आणिकही बहू तीर्थे गंगाद्वारादिक पर्वतीं हो ।।
वंदन मार्जन करिती त्यांचे महादोष नासती हो ।।
तुझिया दर्शनमात्रे प्राणी मुक्तीतें पावती हो ।। जय० ॥ २ ।।

ब्रह्मगिरीची भावें ज्याला प्रदक्षिणा जरि घडे हो ।।
तैं तै काया कष्टे जंव जंव चरणीं रुपती खडे हो ।।
तंव तंव पुण्य विशेष किल्मिष अवघें त्यांचें झडे हो ।।
केवळ तो शिवरूप काळ त्याच्या पायां पडे हो ।। जय० ॥ ३ ।।

लावुनियां निजभजनीं सकळहि पुरविसि मनकामना हो ।।
संतति संपति देसी अंतीं चुकविसि यमयातना हो।।
शिव शिव नाम जपतां वाटे आनंद माझ्या मना हो ।।
गोसावीनंदन विसरे संसारयातना हो ।। जय जय० ॥४॥

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