मराठी संस्कृति समृद्ध एवं समृद्धिशाली है। हमें मराठी संस्कृति के विभिन्न पहलू देखने को मिलते हैं, जिनमें से एक है मराठी त्यौहार। प्रकृति ने हमें हमेशा भर भर के दिया है, यही कारण है कि अधिकांश मराठी त्योहार प्रकृति और प्रकृति के विभिन्न तत्वों से जुड़े है । इन त्योहारों में हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस लेख में हम नारली पूर्णिमा के त्योहार के बारे में जानकारी प्राप्त करने जा रहे है।
महाराष्ट्र में कुल समुद्री तट 720 कि.मी. है। इसलिए महाराष्ट्र में समुद्री मछली एक प्रमुख भोजन है । इस वजह से, तटीय मछली पकड़ना एक प्रमुख व्यवसाय है। साल के लगभग नौ से दस महीने मछली पकड़ने का काम होता है। कोली भाई मछली पकड़ने का व्यवसाय करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं.
नारली पूर्णिमा की तैयारी: श्रावण मास के आंरभ से कोली लोगो को नारली पूर्णिमा की उस्तुकता लग जाती है। नारली पूर्णिमा से पहले कोली भाई अपनी नावों की मरम्मत और पेंटिंग का काम पूरा कर लेते हैं। वे मछली पकड़ने के लिए जालों की मरम्मत करते हैं। वे मछली पकड़ने के लिए आवश्यक अन्य सामग्री भी जमा का लेते है।
बरसात के मौसम में मछली पकड़ना बंद होने का कारण:जब मानसून शुरू होता है, तो शुरू में तेज़ हवाओं और बिजली के साथ भारी बारिश होने लगती है, जिससे तटीय वातावरण बदल जाता है। राक्षसी लहरें और मूसलाधार बारिश समुद्र को अशांत बना देती है, जिससे कोली भाइयों के लिए ऐसे अशांत समुद्र में मछली पकड़ना मुश्किल हो जाता है। इसलिए बारिश के पहले दो महीनों में कोली लोग आराम करते हैं। इस दौरान वे अपने परिवार के साथ रहते हैं।
मानसून के पहले दो महीनों में मछली न पकड़ने का एक और कारण यह भी है कि इस समय मछलियों का प्रजनन काल चल रहा होता है। इसके पीछे का उद्देश्य इन दो महीनों के दौरान मछलियों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए उनकी संख्या में वृद्धि करना है।
सरकारी स्तर पर कोली बंधुओं को बरसात के इन दिनों में मछली पकड़ने की इजाजत नहीं है.
नारली पूर्णिमा मनाने का पारंपरिक तरीका:नारली पूर्णिमा के दिन सभी कोली भाई अपने परिवारों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में, संगीत बजाते हुए, पारंपरिक लोक गीत गाते हुए जुलूस निकालते हैं। शाम को ये जुलूस समुद्र तट पर पहुंचते हैं। इस अवसर पर कोली भाई अपनी खूबसूरत रंग-बिरंगी और झंडों से सजी हुई नावें भी समुद्र में लाते हैं।
किनारे पर पहुंचने के बाद सभी कोली भाई एक साथ इकट्ठा होते हैं और हमेशा की तरह समंदर पूजा करते हैं, प्रार्थना करते हैं। वे आस्था के साथ अपनी नावों की भी पूजा करते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इसके बाद नारियल को समुद्र में अर्पित किया जाता है.
श्रावणी पूर्णिमा के दिन सभी कोली भाई समुद्र में नारियल चढ़ाते हैं और फिर से उस दिन से मछली पकड़ना शुरू करते हैं, इसलिए इस पूर्णिमा को नारली पूर्णिमा कहा जाता है।
नारली पूर्णिमा के दिन सभी कोली भाई समंदर को देवता मानते हुए मनोकामना करते है की ,ये समंदर भगवान हम आपको देवता स्वरुप प्रणाम करते है और आपसे अनुरोध करते है की आप हमारी रक्षा करे किसी भी प्रकार की नैसर्गिक आपत्ति से हमें बचाये और पुरे साल ढेर सारी मछलिया हमें प्रदान करे जिससे हमारे जीवन मि खुशहाली आये और हमारे जीवन में धन की कोई कमी न हो। और सभी एकसाथ मन्नत मंगाते है।
पूर्णिमा पर नारियल क्यों चढ़ाया जाता है?नारियल की पूर्णिमा पर समुद्र में नारियल क्यों चढ़ाए जाते हैं, इसके बारे में कई किंवदंतियाँ सुनी जाती हैं। लेकिन इस बारे में मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि, यदि आप समुद्र तट को देखें, तो किसी भी अन्य फल की तुलना में नारियल के पेड़ अधिक हैं। नारियल के पेड़ की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक वातावरण तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके साल के किसी भी समय नारियल आसानी से उपलब्ध हो सकता है।इसके अलावा नारियल के पेड़ को कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है, पूजा में नारियल का विशेष स्थान होता है और नारियल को शुभ भी माना जाता है।
पारंपरिक प्रसाद और भोजन:नारली पूर्णिमा के अवसर पर नारियल से बना विशेष भोजन देखने को मिलता है. सभी कोली भाई नारियल से बने खाद्य पदार्थ को इस दिन प्रसाद और भोजन स्वरुप बनाते है ,और इस पदार्थ का भोग लगाते है इनमें विशेष रूप से गीले नारियल से बनी बर्फी ,नारियल चावल और नारलावडी शामिल हैं।
नारली पूर्णिमा त्योहारों के पारंपरिक गीत:नारली पूर्णिमा के दिन, सभी कोली भाई, युवा और बूढ़े, पारंपरिक कोली गीत गाते हैं और पूजा के लिए समंदर किनारे पर जाते हैं।और बड़े जोश के साथ कोली गीत ढोलताशे लगाकर गाते है और नाचते भी है।
कोली लोगो का जीवन: कोली लोगो का जीवन ज्यादातर समंदर के साथ जी जुड़ा होता है। नारली पूर्णिमा के बाद पूरा साल वे मछलिया पकड़ने का काम करते है। कोई रात में मछलिया पकड़ने जाता है और सबेरे घर आते है ,तो कोई सप्ताह भर समंदर में मछलिया पकड़ते रहते है।
मछली पकड़ने के बाद सभी मछलियों की नीलामी की जाती है, और इससे होने वाली कमाई का उपयोग कोली भाई अपने परिवारों के पालन
जिस मछली को हम स्वाद से खाते हैं उसके पीछे कोली लोगो की अपार मेहनत की देन है। गहरे समुद्र में जाकर मछली पकड़ना इतना आसान नहीं है। अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से कभी-कभी जानमाल की हानि भी हो सकती है। कोली बंधुओं का यह साहस वाकई काबिले तारीफ है. आज भी, कई कोली लोग पारंपरिक मछली पकड़ने का व्यवसाय करते है। समुद्री नौकाएँ और मछली पकड़ने की अन्य सामग्री बनाने की लागत अधिक है। साथ ही कोली बंधुओं को समुद्र में जाने के लिए सरकार से इजाजत लेनी होती है .कुछ कोली लोग मछली पकड़ने के दौरान अभी भी पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करते हैं। कुछ जगहों पर मछली पकड़ने का काम बिल्कुल आधुनिक तरीके से किया जाता है।
महाराष्ट्र के मुंबई में कोली समुदाय बड़ी संख्या में है. मुंबई में लगभग बीस कोलीवाडे हैं। यहां बड़ी मात्रा में मछली पकड़ने का काम किया जाता है। मुंबई में उपलब्ध विभिन्न संसाधनों के कारण यहाँ मछली का बहुत अधिक व्यापार होता है। जबकि अधिकांश मछलियाँ मुंबई से निर्यात की जाती हैं, कुछ मछलियाँ आयात भी की जाती हैं।
निष्कर्ष:कोली समुदाय बहुत मेहनत से मछली पकड़ने का काम करते है .और अपना जीवन जीते है । नारली पूर्णिमा उत्सव उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। वे इस त्यौहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं और अपने परिवारों के साथ खुशी-खुशी समुद्र के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
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